Principles of Software Engineering in Hindi – सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग के सिद्धांत

हेल्लो दोस्तों! आज हम इस आर्टिकल में Principles of Software Engineering in Hindi (सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग के सिद्धांत) के बारें में विस्तार से पढेंगे तो चलिए शुरू करते हैं:-

Principles of Software Engineering in Hindi 

Software engineering एक बहुत ही कठिन प्रक्रिया है. इसलिए software engineer को निम्नलिखित basic principles को follow करना चाहिए.

KISS (keep it simple stupid) –

इंजिनियर बहुत ही complicated system का निर्माण करते है. इसलिए यह जरुरी हो जाता है कि वो अपने code और debugging प्रक्रिया को simple रखे. वैसे simple रखना आसान नही है परन्तु यह complicated structure से बहुत ज्यादा प्रभावी है. Real life में भी हमें सरल जीजें ही अच्छी लगती है कठिन चीजों में हमें अपना दिमाग use करना पसंद नही होता.

DRY (don’t repeat yourself) –

एक प्रभावी code को हम दुबारा प्रयोग कर सकते है, जो कि एक अच्छी बात है परन्तु program में एक code का बार बार कई जगहों पर प्रयोग नही करना चाहिए. क्यूंकि अगर भविष्य में उस code में कोई गलती हो गयी तो उसे सभी जगहों पर सुधार करना पड़ेगा. जिससे time और effort ज्यादा लगेगा. इसके लिए ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि एक जगह पर code में सुधार कर सकें.

भविष्य के लिए कार्य नही करना चाहिए –

आगे की सोचना और भविष्य का plan करना एक अच्छी बात है परन्तु इससे time और resources का waste होता है. इसलिए सॉफ्टवेर इंजिनियर को वर्तमान में उपयोग किए जा सकने वाले विश्वसनीय, प्रभावी code के निर्माण पर ध्यान देना चाहिये।

open source को याद रखें –

हमें open source से किसी और के द्वारा लिखे गये codes का प्रयोग नही करना चाहिए. हमें internet में बहुत सारें codes मिल जायेंगे जिनका उपयोग हम कर सकते हैं परन्तु ऐसा करना नुकसान दायक हो सकता है.

Divide & Conquer –

हमें बड़ी problems को छोटी problems में विभाजित कर लेना चाहिए. और फिर उस छोटी problem को solve करना चाहिए.

S.O.L.I.D –

SOLID एक छोटा रूप है यह object oriented programming के 5 principles को contain किये हुए है:-

S का मतलब है single responsibility principle :- प्रत्येक class की केवल एक ही responsibility (जिम्मेदारी) होनी चाहिए.

O का मतलब है open/closed principle :- सॉफ्टवेयर इकाइयाँ विस्तार (extension) के लिए खुली होनी चाहिए लेकिन संशोधन (modification) के लिए बंद होनी चाहिए।

L का मतलब है Liskov substitution principle :- एक program में program की correctness (शुद्धता) में बदलाव किये बिना objects को instances के साथ replace किया जा सकना चाहिए.

I का मतलब है interface segregation principle :- कई सारें client specific interface एक general purpose interface से बेहतर हैं।

D का मतलब है dependency inversion principle :- abstraction पर निर्भर होना चाहिए ना कि concretion पर.

इसे पढ़ें:- SDLC क्या है?

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