DOS तथा DDOS के मध्य अंतर (difference)

यहाँ पर मैं आपको बताऊंगा कि dos और ddos में क्या अंतर है तो पढ़ते है इसे-

DOS vs DDOS in hindi (DOS तथा DDOS के मध्य अंतर)

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DOS का पूरा नाम Denial of service है. और DDOS का पूरा नाम distributed denial of service है.

DOS तथा DDOS attacks टूल्स (tools) होते है जिनका प्रयोग hackers के द्वारा online services को नुकसान पहुंचाने के लिए किया जाता है.

कभी कभी इन attacks का दुष्परिणाम इतना ज्यादा होता है कि बड़ी कंपनियों को करोड़ों dollars का नुकसान हो जाता है.

DOS attack जो है वह D.DOS attack से different होता है. और इनके मध्य difference को नीचे दिया गया है.

DOSDDOS
इस attack में किसी system या resource को अटैक करने के लिए एक computer तथा एक internet connection का प्रयोग किया जाता है.DDOS attack में किसी resource या system को attack करने के लिए बहुत सारें computers तथा बहुत सारें internet connections का प्रयोग किया जाता है. इस अटैक में प्रयुक्त होने वाले computers को botnet कहते है.
Denial of service अटैक को उचित security से रोका जा सकता है.इन attacks को रोकना मुश्किल होता है.
इस अटैक में नुकसान का खतरा बहुत कम होता है क्योंकि ज्यादातार इनका प्रयोग केवल online rules को तोड़ने के लिए किया जाता है.इसमें अटैक में नुकसान का खतरा बहुत ज्यादा होता है क्योंकि इनका प्रयोग networks तथा systems को damage करने के लिए किया जाता है.
इसमें malware का प्रयोग नही किया जाता है.BOTNET हजारों infected कंप्यूटरों से मिलकर बना होता है. जिनमें malware तथा viruses होते है.

d.o.s तथा d.d.o.s attacks का खतरा किसको है?

इनका खतरा सभी को है. इन attacks से कोई भी सुरक्षित नहीं है. 2010 में twitter, EA तथा अन्य play-station नेटवर्क D.DOS attacks का शिकार बने. जिससे करोड़ों रुपयों का नुकसान हुआ.
अब आप सोच सकते है कि अगर इतनी बड़ी कंपनियां ही सुरक्षित नहीं है तो कोई भी नहीं है.

इन attacks से कैसे बचें? (what to do for protection?)

D.O.S अटैक से खुद को protect करना बहुत आसान है आप attacker की IP address को firewall तथा ISP से block कर सकते है.

D.DOS attack से खुद को protect करना मुश्किल है. इनसे protect करने के बहुत सारें methods है.

सबसे पहला तो यह है कि आप जितनी भी incoming traffic है उसे webserver को दे दे. वह पता लगाएगा कि कौन सा traffic valid है और कौन सा invalid.

दुसरें तरीकों में आप SYN cookies या HTTP reverse cookies का प्रयोग कर सकते है.

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